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kostuv keshav - kya kasoor lyrics

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क्या क़सूर
तुम जा चुके हो दूर
तू थी मेरा सुकून
और तू थी मेरा सुरूर
ब+फ़तूर
मैं खो चुका वजूद
मैं हिज्र की बेताबियों में
हो चुका हूँ चूर

कभी ख़ास थी तू
आज तू पास भी नहीं
कभी ख़्वाब थी तू
सोता अब रात में नहीं
हाँ माना साथ नहीं तू
पर हैं ख़िलाफ़ में कई
आँखें शबाब तेरी
कैसे शराब बन गई
कि तुझसे एक मुलाक़ात
मुझे राख कर गई
तेरे एहसास की तलाश
मैं आँख भर गई
तेरे पैग़ाम की थी आस
है वो आस मर गई
मेरी साज़ मेरी साँस
मुझे लाश कर गई
अब लगता डर जब
लिखता उसके बारे में
उसकी आँखें सागर
सागर के किनारे मैं
और उसकी यादें गाकर
रखता मैं सिरहाने में
वो भी बयां न होती
लफ़्ज़ों के सहारे से
ये मयकदा है चल रहा
नज़्मों के सहारे से
और खामख़ा फिसलना
रैनों के नज़ारे पे
ये ख़लीफ़ा उठे बस
उसके इक इशारे पे
पूछूंगा मैं खुद को
गर तू मुझको मिले
क्या क़सूर
तुम जा चुके हो दूर
तू थी मेरा सुकून
और तू थी मेरा सुरूर
ब+फ़तूर
मैं खो चुका वजूद
मैं हिज्र की बेताबियों में
हो चुका हूँ चूर

तेरी याद नहीं आती मैं बस
खुद को भुलाना चाहता हूँ
मौजूद तू नहीं ये सच
खुद से छुपाना चाहता हूँ
देखे ख़्वाब न तेरा वो
नींदें गँवाना चाहता हूँ
मैं तो राख अब ये जाम
मुँह से लगाना चाहता हूँ
that’s how i spend my days
look at the texts जब तक
हर हर्फ़ में तू दिखे
और तू दिखे ही न
i start to hallucinate
अपनी क़िस्मतों के लगता
हम ही ख़ूनी थे
है गुफ़्तगू मेरी
सन्नाटों के साथ
गूंज में मैं ढूँढता
हर बात का जवाब
रक़ीब का मोहताज नहीं
जुनून मेरी जान
मुतमइन हो वो दिन
ना उठूं मैं जिस सुबह
दिल के तहख़ाने में है
राज़ की किताब
जिसमें सूख कर मुरझा गया
प्यार का गुलाब
फँसा बीच तेरी हाज़िरी
और ग़ैर+हाज़िरी के
तेरी याद का दरिया
और मैं जूझता दोआब|



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