shlovij - 10 - vibhuti yog (विभूति योग) lyrics
कृष्ण बोले अर्जुन इन परम रहस्य ज्ञान को
दोबारा सुन ले फिर से मैं बताता हूं तुझे।
दोहरा रहें हैं बातें, अध्याय नौ की माधव
उत्पत्ति है मेरी अलौकिक इसका ध्यान तू रख
जन्मरहित है कृष्ण जो भी सच ये जान जाता
समाता मुझमें, वापस मृत्युलोक ना वो पाता।।
कृष्ण कहते अर्जुन से सुन, निश्चय करने की शक्ति
यथार्थ ज्ञान, असम्मूढता, क्षमा, सत्य, इन्द्रियों का वश मे करना
मन का निग्रह, सुख दुःख उत्पति
प्रलय, भय, अभय, अहिंसा, समता, संतोष तप
इन्द्रियां आदि को तपा कर
जो तप किया है जाता
उसको ही तप कहते और
हर भाव यह मुझसे ही आता।
जब कुछ भी नहीं था, मैं था
जब कुछ ना होगा, रहुंगा
सनकादि, सप्तऋषि, मनु, स्वयंभू
सबका मैं ही विधाता।।
जितने भी भाव जगत में, सबके पीछे भी मैं हूं
आदी या मध्य अंत सबके आगे पीछे भी मैं हूं
अर्जुन बोले हे कृष्ण, त्वं परमधाम त्वं परम ब्रहम इति
बोले माधव, अर्जुन ऊपर भी मैं
नीचे भी मैं हूं
बोले अर्जुन हे केशव जो भी आप मेरे प्रति हैं कहते
हे स्वामी जगत के पुरुषोत्तम हम आपकी कृति के जैसे
हे माधव आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते
हैं ऐसे कौन भाव, जिनसे प्रभु आपको और जान लें।
माधव के सुन कर वचन श्री अर्जुन दुख से बाहर आ रहे
क्या है विस्तार की सीमा कृष्ण की वो सुनना हैं चाह रहे
बोले माधव सीमा ना कोई मेरे विस्तार की अर्जुन
क्या मेरी विशेषता सुन ध्यान से, कृष्ण उनको समझा रहे।
अर्जुन मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबकी आत्मा
मैं ही हूं आदी मध्य और मैं ही अन्त मैं ही परमात्मा
वेदों में सामवेद देवों में इन्द्र जीवन की चेतना
एकादश रुद्रों में, मैं शंकर हूं
मेरी लीला ज्ञात ना।
सुन अर्जुन अदिति के बारह पुत्रों में, मैं हूं विष्णु
हर ज्योति में सुन अर्जुन, किरणों वाला सूर्य भी मैं हूं
सुन अर्जुन 49 वायुदेवों का तेज भी मैं हूं
हर वस्तु, अवस्था में जो श्रेष्ठ है, सुन वो श्रेष्ठ भी मैं हूं।
शब्दों में ओंकार, वृक्षों में पीपल, सर्प वासुकी
शस्त्रों में वज्र, गायों में कामधेनु, देवों में नारद
हाथी में श्रेष्ठ ऐरावत, घोड़ों में उच्चैश्रवा भी
आठों वसुओ में अग्नि, सुन अर्जुन मैं ही महाभारत।।
यक्षों में हूं कुबेर, पर्वतों में मैं ही सुमेरू पर्वत
मैं ही स्कन्द सेनापतियों में, नागों में शेषनाग भी
मैं ही पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति हूं, मैं ही कपिल मुनि भी
मैं ही पित्रों में अर्यमा, दैत्यों में सुन प्रह्लाद भी।।
संतान की उत्पत्ति का हेतु, सुन मैं ही कामदेव भी
मैं ही भृगु महर्षियों में, यज्ञों में जपयग्न भी मैं हूं
स्थिर रहने वालों में, मैं ही हिमालय पर्वत जैसा
जलचर में वरुण देव, यमराज भी मैं, हर रत्न भी मैं हूं।।
पशुओं में सिंह, गरुण मैं पक्षियों में, सुन नदी में गंगा
विद्याओं में आध्यात्म, गायत्री छंदों में, ऋतु वसन्त हूं।
हे अर्जुन, हर विवाद का निर्णय करने वाला तत्व वाद मैं
सृष्टि का आदी मध्य उत्पत्ति मृत्यु और मैं ही अन्त हूं।
मुनियों में वेदव्यास,वृष्णीय वंशों में वासुदेव भी
पांडवों में, मैं हूं धनंजय,मैं ही हर युद्ध की नीति
कवियों में शुक्राचार्य, मैं ही दमन करने वालो की शक्ति
गुप्त रखने योग्य मौन मैं, मैं ही हर रात जो बीती।
हे अर्जुन सभी भूतों की उत्पत्ति का कारण मैं हूं
हर व्यक्ति, वस्तु के गुण का करता निर्धारण मैं हूं
मैं ही हर कपट में, छल में, मैं ही हर हार जीत में
मैं ही हर समस्या अर्जुन, समस्या का भी निवारण मैं हूं।।
हे अर्जुन विभूतियों का मेरी कोई अंत नहीं है
माया से रहे मेरी अनभिज्ञ ऐसा कोई संत नहीं है
वसती जो कान्तियुक्त मेरे तेज की, वो भी अभिव्यक्ति सुन
जो भी बतलाया पार्थ, इसका भी कोई अन्त नहीं है।
पर अर्जुन इस सबसे क्या करना तुझको अपना कर्म कर
मैं शामिल हर वस्तु, हर जगह पर, ना तू मेरा भ्रम कर
अपना बस एक प्रयोजन बना, तुझे यह युद्ध है लड़ना
संशय से बाहर निकल, ना आँच आने देनी है धर्म पर।।
इस प्रकार अध्याय दस में श्री कृष्ण अर्जुन के समक्ष अपनी लीलाओं का वर्णन करते हुए बता रहे हैं कि हर वस्तु अवस्था में जो श्रेष्ठ है, वो श्री कृष्ण (विष्णु) ही हैं
Random Lyrics
- emorave - angel wings lyrics
- americanu' - girl's a killa' lyrics
- zorica brunclik - dva srca da imaš, za mene bi dao lyrics
- suzi - tigrica lyrics
- carriers - dangerous dancer lyrics
- crypants - sun in your eyes lyrics
- collapse 7 - stagnating stain lyrics
- infidelity - ladybug (original) lyrics
- mdma - shuttle 23 lyrics
- soulryze - очертания (outlines) lyrics